प्रेम की यात्रा
हमारे समाज में प्रेम को सबसे उच्च स्थान प्राप्त है दुनिया में सारी शिक्षा दी जा रही पूरा विश्व तरक्की के रास्ते पर आगे बढ रहा है ऐसे समय में जो पीछे छूट रहा है वो है प्रेम आज के समाज में लोगो के पास सब कुछ है लेकिन उनके अंदर प्रेम नहीं है आज जो भी हत्या बलात्कार या अन्य ऐसी घटनाए घटित हो रही है उनमें इसकी कमी साफ़ साफ़ देखने को मिल रही है आज कल लोग आधुनिक हो गए है वो प्रेम का दिखावा कर के अपने उल्लू सीधा करने में लगे हुए है इससे इसकी पवित्रता भी संदेह के घेरे में खड़ी हो गई अब अगर आप किसी को प्रेम भी करते है तो सामने वाले को लगेगा कि उसके साथ छल किया जा रहा है।हमारे देश में प्राचीन समय से प्रेम के अलग अलग उदाहरण मौजूद है ,लेकिन समझने वाली बात ये है कि अगर इसे इतना ही अच्छा दिखाया गया है तो समाज इसका विरोध क्यों करता है,क्योंकि समाज में प्रेम नहीं रहा कभी बस ये परिकल्पना बन कर रह गई,और जिसको समाज ने प्रेम समझा वो स्वार्थ के रूप में बहुत तेजी से विकसित हुआ।प्रेम परमात्मा का मूल स्वरूप है उसमे कोई स्वार्थ या उद्देश्य नहीं छिपा होता प्रेम निर्मल जल की भांति बहना चाहता है लेकिन लोग उसपर बांध बना कर उसको रोकने में लगे हुए है सदियों से ये आज की बात नहीं है,प्रेम कुछ पाने या खोने की बात नहीं यह एक सुखद अनुभव है जीवन का जिससे आज पूरा समाज वंचित है,यदि आज प्रेम की विचार धारा समाज में होती तो ये युद्ध नहीं होते।जो हमारे जीवन में प्रेम की यात्रा है वो जन्म के साथ ही शुरू होती है लेकिन जैसे ही हमारे अंदर बुद्धि का विकास होता है ये कही गुम हो जाती है फिर एक समय ऐसा आता है कि प्रेम फिर से बाहर आने को होता है किसी की तलाश में शायद वो अपना ही प्रतिरूप खोजने की कोशिश करता है,और न मिलने पर वो अस्तित्व विहीन हो जाता है फिर पूरी जिंदगी उसकी प्रेम की यात्रा अधूरी ही रह जाती है बस उसे ये मालूम होता है कि प्रेम भी कुछ होता है लेकिन उसके अनुभव से वो वंचित ही रहता है ।।
Very good bro,keep it up